Friday 4 November 2016

स्कुल की कुछ बाते याद है.....इतना पता है कि श्लोक सबसे जल्दी याद होते थे....
*यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
....जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है....चाहे ज्योतिष-शास्त्र कुछ भी कहे...विधाता के भाग्य मे समझौता शब्द कहीं न कहीं अंकित हो सकता है.....मेहनत की ताकत अपना जौहर दिखा कर रहती है.

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