Saturday 19 November 2016

बारिश ना हो तो फसल ख़राब और संस्कार ना हो तो नस्ल ख़राब.....यह सही है कि खाली हाथ आये है और खाली हाथ जाना है...मगर हाथ मे काम ना हो तो खाली दिमाग शैतान का घर...और शैतान का हर एक शौक...एक नहीं, अनेक रोग का कारखाना...यह सत्य शाश्वत सिद्ध होता है कि हमारे व्यवहार, विचार, व्यवस्था और संस्कार से हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व रचनात्मक सिद्ध हो सकता है...और परिवेश कहता है कि शैली स्वस्थ हो, सोच विधायक हो, कर्म स्फूर्त हो....कुल मिला कर तथ्यों मे स्वतंत्र अभिव्यक्ति हो....जीवन मूल्यों की सुरक्षा मे संकट उत्पन्न ना हो...आज-कल व्यवहार मे अशुद्धता आम बात है....वजह स्पष्ट है....आवेश की अधिकता, पक्षपात पूर्ण रवैया, बहस पूर्ण विचार, स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति, निषेधात्मक सोच, समय प्रबंधन का अभाव....और यह तय है कि संतुलन, धैर्य, विवेक तथा सापेक्ष चिन्तन ना हो तो बरसो का व्यवहार पल मे बिगड़ जाता है...कोई अपनी विगत भूलों को याद करता है तो वर्तमान समस्याओं का स्वतः समाधान प्रकट होता है....कोई धन का संग्रह करता है, कोई ज्ञान का, कोई विचार का तो कोई धारणाओं का...तब हर कोई अपने संग्रह को दुर्लभ होने का दावा करता है...और इसी में आग्रह-दुराग्रह चलता रहता है....तब शक्ति कहाँ ?...क्रूरता मे या विनम्रता मे...और कहावत यह कि मैदान-ए-जंग और मैदान-ए-मोहब्बत मे सब जायज़ है....जो व्यक्ति स्त्री-शक्ति के संपर्क मे कम रहता है, वह क्रूर बन जाता है....जो व्यक्ति कर्कश स्त्रियों के संपर्क मे रहता है, वह कमजोर बन जाता है....पुरुष को प्रेम की परिभाषा स्त्री ही सीखा सकती है...हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला की शक्ति होती है....और हर महिला के पीछे पुरुष की भक्ति होती है...तब यह शाश्वत तथ्य कि भक्ति मे शक्ति होती है...महिला-मित्र और पुरुष मित्र आज से नही बल्कि प्राचीन युग से...और बल्कि आदम और हव्वा के युग से.....boyfriend & girlfriend...यह आकर्षण तो वैज्ञानिक रूप से भी चुम्बकत्व से परिपूर्ण....अन्यथा लेने की बात नही....हर महिला या स्त्री या कन्या का श्रेष्ठ मित्र सर्वप्रथम उसका पिता, तत्पश्चात भाई....इसी प्रकार पुरुष या युवक या नवयुवक की श्रेष्ठ मित्र सर्वप्रथम उसकी माता, तत्पश्चात बहन ही हो सकते है...बाकी सम्बन्ध तो लेन-देन और आदान-प्रदान के दायरे में...

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