जैसे को तैसा....सबके साथ समान व्यवहार....रघुकुल रीत सदा चली
आयी....अनवरत....आज-तक कायम....उत्तराधिकारी बनने की प्रथा या संस्कार या
मान्यता....मृत-शरीर के दाह-संस्कार की प्रथा हिन्दू-धर्म मे
सर्वोपरि....परिजन द्वारा शव चिता पर रख कर ज्येष्ठ-पुत्र द्वारा अग्नि तथा
कपाल-क्रिया होती है...क्योंकि यह माना जाता है कि शरीर जलने के बाद भी
मस्तिष्क मे चेतना रह जाती है....हिन्दू आत्मा को महत्वपूर्ण मानते
है....तब शरीर का महत्व तब-तक, जब-तक उसमे आत्मा है....चूँकि आत्मा का मोह
शरीर से रहता है अतः संस्कार विधिवत
धर्म-सम्मत....जीवात्मा का स्थूल तथा छाया शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी घर
और परिवार से मोह बना रहता है....सामान्य आत्मायें मृत्यु के बाद नया गर्भ
खोज लेती है...किन्तु कुछ को तीन दिन, तेरह दिन, एक वर्ष, तेरह वर्ष या
इससे भी अधिक प्रतीक्षा करना पड़ सकती है....हिंदुओं की यह मान्यता है कि
जीवात्मा तेरह दिन तक घर में ही रहती है...और इसके बाद प्रेतयोनि मे जा
सकती है...अतः इस योनि से मुक्ति के लिये तेरह दिनों तक अनिवार्य रूप से
कर्म-कांड होते है...गरुड़-पुराण सुना कर उसे उस अशरीरी दुनिया की सुचना दी
जाती है...जिससे वह अपरिचित है...और जीवात्मा के प्रतीक के रूप मे जल से
भरा कलश रखा जाता है....तब श्रावणी-कलश के साथ घी का दीपक जलाया जाता
है...दसवे, ग्यारहवे तथा बारहवे दिन पिण्ड-दान भी किया जाता
है...ससम्मान....तेरहवे दिन जीवात्मा को विदाई दी जाती है...तब कलश को पीपल
के पेड़ के नीचे रख दिया जाता है...यह मान कर कि पीपल मे देवताओं का वास
होता है....यह तो मानना होगा कि सनातन धर्म मे मत्यु के बाद भी सम्मान का
संस्कार श्रेष्ठतम हो सकता है...सचमुच ईश्वरतुल्य.......और सम्पूर्ण
घटनाक्रम के पश्चात् मृतक का उत्तराधिकारी पगड़ी की रस्म के बाद घोषित कर
दिया जाता है...रघुकुल रीत सदा चली आई....प्राण जाये पर वचन ना
जाये.....वाद-विवाद और प्रपंच से कोसो दूर....और यदि कोई ग़लतफ़हमी हो तो
तेरह दिन मे शांत मन से...लोक-लाज के डर से....समस्या को हल करने के लिये
पर्याप्त समय....सबके-साथ....सबका-विकास...स्वस्थ सामाजिक दृष्टिकोण
सर्वोपरि....गवाही मे बुजुर्ग....सर्वोत्तम लोक-अदालत...तब पंचों में
परमेश्वर की मौजूदगी का अहसास ईश्वर भी करता है....तब साक्षी में स्वयं
ईश्वर....तब यही निर्णय कि संस्कारो से निजात पाना लगभग असंभव....लेकिन
मानसिकता को स्वस्थ बनाने के लिये यही संस्कार अनिवार्य....और संपूर्ण
परिवार की विचारधारा स्वस्थ मतलब जिंदगी खुशहाल....तब यह भी सत्य है कि
सबके पल्ले लाल....तब हर माता कहना चाहे....कौशल्या मैं तेरी....तू मेरा
लाल....तब हर पुत्र कहलाये...नन्द-लाल...तमसो मा ज्योतिर्मय......मनुष्य
अजर-अमर नहीं है...आत्मा और ज्ञान अजर-अमर है.....और इनकी यात्रा कभी नहीं
थमती है....जैसे समय....ना थमता है....ना थकता है....जो कुछ भी है, जिसे हम
ईश्वर के नाम से जानते है....वह प्रकाश का ही रूपांतरण है....जिसकी कृपा
से सबका सब काम हो रहा है और होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
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