Saturday 5 November 2016

अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा हो सकता है...कितने करीब ज़िंदगी के मौत खड़ी है, फिर भी हरेक शख़्स को अपनी ही पड़ी है.... तेरी-मेरी करता रहा तमाम उम्र भर... भरता रहा तिजोरी तमाम उम्र भर... अंत समय झोली पर खाली ही पड़ी है.....उन्नीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध अमरीकन निबन्धकार, कवि और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो कहते हैं - मनुष्य सफल होने के लिये पैदा हुआ है, असफल होने के लिये नहीं.... लेकिन, कितने लोग इस बात को जानते हैं? फिर, कितने लोग इस बात को मानते हैं? और कितने लोग वास्तव में सफल होते हैं?.... बहुत ही कम....क्यों?.... क्योंकि हम जानते ही नहीं कि सफलता क्या है....कोई धन एकत्र करने को अपनी सफलता समझता है तो कोई पुण्य एकत्र करने को....कोई बड़ी हवेली बनवाकर अपने को सफल समझ लेता है तो कोई ऊँचा पद पाकर....कोई अपने ज्ञान और पाँडित्य को सफलता मान लेता है, तो कोई अपनी नैतिकता और सदाचार को..... क्या ये सब वास्तव में सफलता के प्रतीक हैं?...नहीं!..... यदि बड़ी हवेली में रहकर भी किसी की ज़िन्दगी कलह-क्लेश में गुज़रे तो क्या आप उसे सफल कहेंगे?..... यदि कोई धनवान धन की चिन्ता में रात को सो नहीं सके तो क्या वह सफल कहलायेगा? .....‘परलोक’ को ‘सुधारने’ की लालच में यदि कोई घर-गृहस्थी छोड़कर, महात्मा बन जाये तो क्या वह सफल हो जाता है?.... हम लोग दूसरों से बड़ा बन जाने को अपनी सफलता समझते हैं, इसलिये हम अपने आप को दूसरों की नजरों में ऊँचा सिद्ध करना चाहते हैं....फिर हम सफलता की ऐसी विभिन्न परिभाषाओं में उलझ कर रह जाते हैं जो दूसरों के द्वारा बनाई हुई होती हैं.....पर, वास्तव में तो सफलता की एक ही परिभाषा है - जो अपने ढंग से जीने में पूरी तरह से सन्तुष्ट है, वह सफल है.....मन का सुख ही उच्चतम सफलता है....**”जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…

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