फोटो कितनी भी सुन्दर मगर है तो फोटो....हम उस स्थान की फोटो दिवार पर
टांगे....जहाँ हमारा आना-जाना लगा रहे..एक ही चाहत....जब अकेले हो तो
परमात्मा से बात हो जाय....और जब किसी के साथ हो तो परमात्मा की बात हो
जाय.....और बुजुर्ग अपने अनुभव के आधार पर कहते है.....”करने से होता
है”.....कुछ हो ना हो....बस जिक्र हो जाये.....और जिक्र सुन कर फ़िक्र हो
जाय....चिन्ता और चिता की बात नही....और बुजुर्गो की आवाज़ पर जो दौड़ लगा
दे...आज्ञाकारी-पाकीज़ा.....सीधी बात...सर-आँखों से बड़ कर कुछ नहीं.....जो
हुक्म मेरे आका कहने में फुर्ती....चीते की चाल.....सरपट...लपक में घौडे
से ज्यादा...लंबी रेस मे घोड़ा ही आगे...पर बात लपक की है...अकड़-धकड़ या
मार-पकड़ हो...सब बाद में.....केस पर पकड़ बनाने की फ़िक्र....back side का
U....फॉर साइड की नोक.....बाजीराव की तलवार....आँखों के बगैर बाज़ की
नजर....और बाज़ की नज़र पारस-पत्थर पर....तब मूर्ति भी पत्थर की....पत्थर
से मूर्ति बने.....और पारस भी पत्थर का एक रूप....शायद इसीलिये पत्थर की
मूर्ति समस्त धातुओं मे अग्रणी....भले ही अस्तित्व पर असमंजस....नास्तिक या
आस्तिक की बात नही....खुदाई मे मिल जाये तो खड़ी कर
दो...खम्मा-घणी.....जैसे स्त्री-तत्व.....आदमी भगवान को देखता है मगर सिर्फ
तस्वीरों मे...मगर भक्ति में महिलाओं का अनुभव ज्यादा...स्त्रियों का
प्रतिशत सत्संग में पुरुषों से ज्यादा है...स्त्री-पक्ष के साधक कम किन्तु
महिलाओं की संख्या भक्ति में ज्यादा....फोटो कितनी भी सुन्दर मगर है तो
फोटो....हम उस स्थान की फोटो दिवार पर टांगे....जहाँ हमारा आना-जाना लगा
रहे....पर्यटन का कार्य सीधे घर से शुरू हो घर पर ही ख़त्म होता है...हर हर
महादेव.....सोम मंगलम, सोमवार मंगलम.....अर्थात सम्पूर्ण वायुमंडल
मंगलमय....जय हो....प्रणाम....ॐ नम: शिवाय.....सहज या
संकल्पित...WHATEVER....परन्तु अनिवार्य.....अंदाज़ अपना-अपना....उच्च,
समकक्ष, निम्न....और मुश्किल को आसान करने के लिए....एक ही सामान्य आसान
उपाय....बारम्बार...‘करत-करत अभ्यास के जङमति होत “सुजान”.....रसरी आवत
जात, सिल पर करत निशान’......और जल-घर्षण से कंकर भी ‘शंकर’ बन
जावे.....’परम-सुजान’....”महादेव”.....सदस्य, संपर्क तथा
संवाद...पारदर्शिता, नियंत्रण और गठबन्धन...एकाग्रता, एकान्त और
प्रार्थना....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम"...सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव को सत्य तथा
सुन्दर स्वीकार करता है....शिव 'नटराज' है....नृत्य की परिधि में आदि
है...मध्य है....अंत है...सम्पूर्ण अभिव्यक्ति....कैवल्य तथा निर्वाण की
महासमाधि...ज्ञान की गंगा में शिव, शिवत्व तथा शिवत्व में समर्पण का समावेश
हो जाये तो "सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति सुनिश्चिंत है.....भक्त,
भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता
है....रिक्त स्थान की पूर्ति.....Fill in the BLANKS.....सब मित्रों के बीच
बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक
स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).
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