राम-राम सा.....हमेशा हवाबाजी जायज नहीं.....टिकने के लिये जमीन
सर्वोत्तम.....हवा बनाने की बात नहीं.....हवा तो पहले से है....हाँ हवा को
शुद्ध करने की आवश्यकता अवश्य हो सकती है.....जैसे बिजली और पैसे की बचत ही
इनका उत्पादन है...वैसे वायुमंडल में अशुद्धि का समावेश रोकना ही
शुद्धिकरण का पहला प्रयास हो सकता है....यह बात अलग है कि अधिकांश लोगो की
सोच है कि पैसे से पैसा बढता है.....कुछ लोग बैंक में पैसा रख कर सोचते है
कि पूंजी BLOCK हो रही है....कुछ मित्र सोचते है कि दो दिन की जिन्दगानी....जी
भर कर खर्च कर लिया जाए....और सनातन पक्ष सिर्फ यह कहता है कि....जिन्दगी
को सिर्फ आवश्यकता के अनुरूप जी लिया जाय बस......तब कोई नहीं कहेगा
कि......यह जीना भी कोई जीना है यारो....बस देर है तो अपनी आवश्यकता को
पहचानने की.....फिर यह कहते देर ना लगेगी कि...जियो तो शान से....या
फिर....जीना है तो ऐसे जियो....जिन्दगी भी याद करे.....मौत मांगे दुआ और
जीने की फ़रियाद करे.....श्री राम जय राम जय जय राम....तेरह अक्षरों का
मन्त्र...सरल और सुगम....बारह अक्षरों के आगे श्री का शंख-नाद....राम जी की
तीन बार जय-जयकार....तन, मन, धन सब-कुछ समर्पित...तेरा तुझ को अर्पण, क्या
लागे मेरा....राम की चिड़िया, राम का खेत....कुल पांच अक्षरों का
सुगम-संगीत....छोटी सी गणना...यही विश्वास कि राम जी करेंगे बेडा पार....और
रामचंद्र कह गये सिया से...मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे अनुयायियों की
उन्नति मुझ से ज्यादा हो...लेकिन यह उनके प्रेम, परिश्रम और ईश्वर के
अनुग्रह पर निर्भर रहेगा...प्रेम और परिश्रम से किसी भी बंद दरवाजे की
साँकल बजने लगेगी....और यह आवाज स्वामी तक अवश्य पहुँचती है...
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