Friday 4 November 2016

छोटी सी बात...ना मिर्च, ना मसाला....कह कर रहता है, कहने वाला....अर्श से फर्श पर अनेक लोग जाते रहते है....किन्तु कुछ लोग फर्श से अर्श पर जाते देख सकते है....और आने-जाने की खबर अखबार मे...रोज़ाना...जो फर्श पर है,जमाना उनके भाग्य को इसके लिये जवाबदार मानता है....जो अर्श पर है...वे मेहनत को मानते है...दो दिन दूकान ना जाओ तो गल्ला आवाज़ लगाता है....अलख जगाता है....आजा-आजा...मैं हूँ प्यार तेरा....और दूकानदार गल्ले के ऊपर भगवान के फोटो को अगरबत्ती लगा कर कहता है....YOUR presence is so POWERFUL....और गल्ला कहता है...DO NEEDFUL....stay till further order...सावधान ग्राहक कभी भी...किसी भी रूप में...कहीँ से भी आ सकता है....व्यापार मे ग्लोब्लाइज़ेशन प्राचीन काल से लागू है...आमने-सामने होने के लिये रूबरू होना पहले से कहीं ज्यादा आसान है...इतना तय है कि मिलने-जुलने से विचार प्रकट होते है...जने दो और विचार दस...सफल व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिये आरोप धक्का देने का काम करते है....आलोचना प्रतिपल चुनौती देती रहती है....बच्चों को पैसे बचाओ आंदोलन में हिस्सा लेने के लिये प्रोत्साहन आवश्यक है...किन्तु फिजूलखर्ची को रोकना उत्तम अनुशासन....क्योंकि हर चौराहे पर दुष्यासन...हाथी के दाँत....जो चीज दिखती है,वह एक ना एक दिन जरूर बिकती है....हो सकता है, इसीलिये सिद्धि और साधना परदे में उचित है....जैसे धन, स्त्री और भोजन....सार्वजनिक होने की एक शर्त....पूर्णतः मर्यादित....कोई सोने सा तोले...कोई मिट्टी सा बोले...कोई फर्क नही पड़ता...अपने-अपने दिल का फैसला....दिल और दिमाग से दुनिया को हार कर भी जीता जा सकता है....तब शक्ति कहाँ ?...क्रूरता मे या विनम्रता मे...और कहावत यह कि मैदान-ए-जंग और मैदान-ए-मैंदान सब जायज़ है....जो व्यक्ति स्त्री-शक्ति के संपर्क मे कम रहता है, वह क्रूर बन जाता है....जो व्यक्ति कर्कश स्त्रियों के संपर्क मे रहता है, वह कमजोर बन जाता है....पुरुष को प्रेम की परिभाषा स्त्री ही सीखा सकती है...हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला की शक्ति होती है....और हर महिला के पीछे पुरुष की भक्ति होती है...तब यह शाश्वत तथ्य कि भक्ति मे शक्ति होती है....तब कोई किसी का मोहताज नहीं....ताज से मोह रखना संभव भी नहीं ही....ताज काँटों भरा भी हो सकता है....बुजुर्ग कहते है....सम्पूर्ण सँसार...भगवान भरोसे...
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर ।
होहिं बिषय रत मंद मंद तर ॥
काँच किरिच बदलें ते लेहीं ।
कर ते डारि परस मनि देहीं ॥
जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम का भजन नहीं करते है.....बुरे विषयों में खोए रहते हैं...वे लोग अशुद्ध आचरण से पारस मणि को फेंक देते है और काँच के टुकड़े हाथ में उठा लेते है....तब आनंद की उत्पत्ति कैसे हो ?...सुख कैसे आवे ?... आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS..

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