Friday 4 November 2016

बोर होने की बात नहीं....बैठे-बैठे क्या करे ?...बड़ो के पास फुर्सत नही किन्तु बच्चो के पास ढेर सारा समय...जैसे ईश्वर के पास समय ही समय...किसी भी मूर्ति की आँखे बंद नहीं....लेकिन बच्चों के खैलने के लिए अंताक्षरी....खेल का कोई अंत नही....याददाश्त खत्म तो खेल ख़त्म....जेहन मे बात टिकने पर ही दुनिया में टिकने का मजा...वर्ना टिकिया के संसार का अंत नही...आदमी का स्वभाव या इच्छा यही कि मस्ती मे रह कर मस्तराम कहलाये....और यह मान्यता है कि मस्ती मे मदहोशी का पुट होना चाहिये....फ़ाग-उत्सव से यही सिद्ध होता है...तब सनातन धारा कहती है कि मदहोशी मे सात्विकता का पुट शामिल हो...और अनिवार्य रूप से संकल्पित हो....और यह आदमी की जिद होती है कि जो उसे अच्छा लगता ही वह उसी को बार-बार करता रहता है....और आध्यात्म का एक सूत्र है...अति सर्वत्र वर्जयते...और अति लत का दूसरा नाम है....और अति का समापन इति का अंतिम नाम हो सकता है....और कुल मिला कर चीज एक ही है...बस नाम अलग-अलग है....जैसे स्वयं ईश्वर....नाम अलग-अलग किन्तु बुजुर्ग कहते है....वो एक ही है...दिखता नही...क्या करता है ?....मालुम नहीं...पूछने पर ज्ञात हुआ कि कुछ ना कुछ तो करता होगा....और तहकीकात करने पर पता लगा कि वह वही करता है जो हम नहीं करते है....अति का आकलन....बस एक काम...हिसाब रखता है......तब मन बहस करता है कि मेरा हिसाब-किताब सर्वोत्तम...बचपन से ज्यादा से ज्यादा को प्राप्त करने की जिद करता है....लेकिन जाँच-पड़ताल कहती है....सब कुछ ठीक है, बस अति का हिसाब नही है....और भूल-चुक, लेनी-देनी मे अति उपलब्ध ही नही...जैसी आदमी की जिंदगी सिमित...सिर्फ सौ साल मे सिमट जाये...उतना ही सिमित हिसाब....और वैसे भी आदमी अति का हिसाब कभी ना रखे....तब यह काम आखिर कोई तो करे...और सदियों से सबको एक ही सन्देश....थोड़ा है, थोड़े की जरुरत हो सकती है....और हद पार करने की कोशिश को अति मान लिया जावेगा....Fully Automatically...भूलने की आदत को ठीक करने का दावा सभी करते है परन्तु याद करने का प्रयास सिर्फ स्वयं को करना पड़ता है....सब कुछ करके देख सकते है...गिनती और पहाड़े कभी भी पीछा नहीं छोड़ते है....इंसान का बस चले तो खुद की उम्र को दस से गुणा करके दस नम्बरी कहलाये....मगर शायद यह चमत्कार सौ वर्ष में संभव नहीं...."विनायक समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)

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