ज्योतिष वेद का प्रमुख अंग है....वैदिक-साहित्य मे चक्षु-स्थान
प्राप्त...तब वेदों का उद्देश्य है, अनिष्ट का परिहार तथा इष्ट की
प्राप्ति...इष्ट और अनिष्ट का ज्ञान ही ज्योतिष का प्रमुख विषय है....किस
समय इष्ट की प्राप्ति होगी ?...किस समय अनिष्ट घटित हो सकता है ?...तब हम
सावधान रहे और उचित उपाय द्वारा सुरक्षित रहे....समय की अवधि के आधार पर
इष्ट-अनिष्ट का निर्धारण का आकलन सिर्फ ज्योतिष-शास्त्र मे...वह
अद्भुत-विद्या जो भौतिक-परिस्तिथि, मानसिक-स्थिति तथा आध्यात्मिक-चेतना के
सुसंयोग से जीवन को समग्र बनाने मे सहायक
हो....यह स्मरण करते हुऐ कि परिश्रम का कोई विकल्प नही....और इस विधा का
ज्ञाता बालक होते हुये भी चालक-स्वरूप होता है...विशिष्ट राजयोग विचार
अनुसार "कमल-योग" का कमाल....विशिष्ट लोग भी परामर्श के लिये संपर्क कर
सकते है....तब एक ही आधार....शुद्ध-अध्ययन....जिसका मुख्य आधार....आहार,
विहार, सदाचार....सरल दर्शन-शास्त्र.... ज्योतिष-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र
में लगभग वही अंतर है जो हस्त-रेखा-विज्ञान तथा मुख-पठन (FACE-READING) में
संभव है...और यह अंतर अनुभव करने के लिये दोनों पहलुओं का अध्ययन करना
होगा...ज्योतिष शास्त्र में अप्रत्यक्ष दावा-प्रस्तुति तथा आकलन तनिक भय के
साथ...मगर दर्शन-शास्त्र का एक ही सिद्धान्त या नियम या शर्त या
धर्म....और वह है....आमने-सामने....हवा, बिजली और ईश्वर को छू कर देखने में
दर्शन-शास्त्र का पूरा-पूरा उपयोग...ज्योतिष में आँख बंद करके प्रार्थना
संभव है
No comments:
Post a Comment