Friday 4 November 2016

क्या ये समस्त प्रश्न ज्योतिष-शास्त्र से सम्बन्धित है ?....जीवन के दुःख कैसे दूर हो...धन कैसे कमाये....बिमारी की पीड़ा कैसे काम हो...पढाई मे अव्वल कैसे आये...परमात्मा की कृपा कैसे प्राप्त हो...शादी के उत्तम योग शीघ्र कैसे बने....व्यापार में मनचाही स्थिति कैसे बने....नौकरी मे प्रमोशन कैसे हो....लड़का कैसे पैदा हो....घर कैसे बने....दुश्मनो पर विजय कैसे हो....कुल मिला कर सिमित सवालों के असीमित उत्तर....और इन सबका जवाब प्राप्त करने के लिये कोई भी किसी भी स्तर पर प्रयासरत हो सकता है...तब इस सम्भावना से भी इंकार नही किया जा सकता है कि किसी की भावना का दोहन किसी भी स्तर तक हो सकता है...साम, दाम, दंड, भेद, छल, कपट सब कुछ सम्भव है....और यह गुरु की चेतावनी कि ज्योतिष-शास्त्र से आजीविका आजीवन संभव या जायज़ नहीं....तब इस पावन विद्या का एक ही उपयोग कि मात्र भक्ति एवं सात्विक-प्रार्थना से जीवन को सुखमय बनाया जाये...और परम पिता परमेश्वर की इच्छा को सर्वोपरि मान कर किसी भी कार्य को सफल तथा सुफल बनाने के लिये सार्थक तथा सात्विक प्रयास होते रहे....पश्चिम की सभ्यता कहती है...हम दुखों का प्रतिकार करे...अपनी शक्ति से उन्हें विजित कर उनका नाश कर सकते है...भारत के संस्कार कहते है....हम भी दुखो का नाश करते है.....प्रतिकार नही....सहन करने की क्षमता से यही दुःख हमारे लिये आनन्द की वस्तु बन सकता है....परस्पर के आनन्द को उत्पन्न करने का प्रयास....प्रारम्भ से अन्त तक...एक ही लक्ष्य...दुःख निवारण,दुखों का क्षय और नाश....पश्चिम कहता है....कर्म मे शक्ति छुपी है...भारत कहता है...सहिष्णुता द्वारा शक्ति-प्रदर्शन श्रेष्ठतम कला है....मनुष्य कितने भौतिक विषयों का स्वामी बन सकता है ? उसका उत्तर पश्चिम देता ....और भारत का उत्तर इस सवाल हेतु कि मनुष्य कितना त्याग कर सकता है ?...जैसा गणित के सवाल मे...L.H.S.=R.H.S.....बात ऊपर से जाना या समझने का प्रयास.... मतलब मुंडी का ज्यादा हिलना....और संतुलन संत के स्वभाव मे स्वतः....आदमी को अपने संपर्कों के कारण घमंड आ जाये तो संपर्क स्मारक का काम कभी ना करे....नाम शुदा स्मारक...राम-लला....घमण्ड के कारण लंका स्वाहा...सम्पर्क ध्वस्त....और जब भी विद्ध्यर्थी का मन भयग्रस्त हो....पाठ्य-पुस्तकों से सम्पर्क करना चाहिये....जैसे हनुमान-चालीसा से सम्पर्क होता है....सिद्धि की एक ही शर्त....प्रतिपल के लिये, प्रति श्वास के लिये ईश्वर को धन्यवाद....एक भी पल निरर्थक नही....दान-दक्षिणा से दूर...खरीद-फ़रोख़्त से बाहर...ना हार, ना जीत...ना लालच, ना डर....ना घर, ना बाजार....ना उधार, ना सूद....तब प्रार्थना....कभी भी, कहीं भी, कैसे भी....दिल से, भाव से, विचार से, समर्पण से....माध्यम एक नही अनेक....ज्ञान, आध्यात्म, तप, संस्कृति, संस्कार....और सुखद परिणाम....सुख-शान्ति, समृद्धि, आनन्द....जय हो...सादर नमन...सादर प्रणाम”.....आपकी खुशहाली एवम् सुफलता ही हर अभियान की सफलता मानी जा सकती है....एवम् सही कार्य उपलब्ध न हो तो व्यक्ति हताशा एवम कुंठा से ग्रसित हो कर स्वयं को असफल घोषित मानने लगता है...और एक विद्वान मित्र ने कहा है....”GRANT ME A PLACE TO STAND I SHALL LIFT THE EARTH”….अर्थात....शुद्ध परामर्श...”TRAIN YOUR ‘MIND’…TO MIND YOUR ‘TRAIN’…..यही विनय !...हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)….

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