303.....थ्री नॉट थ्री की बात नही....ताजीराते हिन्द दफा 302...यह सजा तब
मुक़र्रर....जब कोई खुद जिन्दा रह कर दूसरे के वजूद को ख़त्म कर देता
है.....खुद की लाईन लम्बी करने के लिये दुसरो की लाईन मिटाना कानूनन
जुर्म.....और इस व्याधि को दूर करने के लिये आध्यात्मिता का
चटनी-चूर्ण.....तब वजूद खड़ा करने मे किसी एक का हाथ नही...एक हाथ से वैसे
भी ताली नही बजती...चुटकी बजाने वाली बात नही...चन्दन के वृक्ष को भी सुगंध
फैलाने के लिये एक उम्र की आवश्यकता होती है...वजूद को कायम करने के लिये
खुद पर भरोसा करना पड़ता है...यूँ तो
विश्वास पर दुनिया कायम है...भैस पर भरोसा करने वाली बात नही...वर्ना पानी
और आग दोनों पर भरोसा पल मे पलटी खा जाता है....इसीलिये बारिश मे रपट पर
पानी आ जाय तो पुलिया पार करना मना होता है...तब यह डर कि बस पलटी न खा
जाय...अस्तित्व को बनाये रखना सचमुच चुनौती भरा काम...अस्तित्व को जीवित
करने के लिये....यात्रा गाजे-बाजे से ले कर प्रसूति-गृह
तक...संघर्षमय-उत्सव....तब यह गलत फहमी न हो कि खुद से बढ़ कर कोई समझदार
नही...और भ्रम का भ्रमण ख़त्म करने के लिये एक ही उपाय पर्याप्त....पुस्तको
पर जमी धूल को तनिक साफ़ कर ली जाय...तब आमने-सामने साक्षात्कार में एक ही
आकलन कि बंदा आगे चल कर कितना काम कर पायेगा ?...और काम कभी कह कर नही
आता...जैसे ग्राहक....बस कभी-कभी ढूंढने की कवायद करना पड़ती है...दस
रुपैये की ईमानदारी, दस लाख तो नही किन्तु ईनाम दस हजार की लिस्ट मे नाम
अवश्य जोड़ सकती है...और मात्र दस पैसे की बेईमानी, दस लाख की इज़्ज़त पर
पानी फेर सकती है....जबकि पानी को खेतों में फेरना ज्यादा उचित होता
है....ताकि फसल सही रूप मे हाथ मे आ जाये....खाली हाथ आने-जाने की बात सबको
मालूम....और यात्रा मे काम से कम सामान ही उचित...ट्रेन मे लिखा होता
है....यात्रीगण अपने सामान से रास्ते को अवरुद्ध ना करे....और जरुरी सामान
हमेशा संभाल कर रखा जाता है....किसी चीज को रोज हाथ न लगाया जाय तो चीज
दिमाग से गायब....और हाथ से वही चीज छूटती है, जो नियमित रूप से हाथ मे नही
आती है....यदि किसी पहलु को नियमित रूप से ध्यान से देखा जाय तो जेहन मे
जम जाती है...जैसे दूध का दही के रूप मे जमना....भेजे की छाछ करने वाली बात
नही....दौलत की कमि ज्ञान से पूरी होने के आसार पुरे-पुरे....तब अमन-चैन
भी अनुभव करने की चीज हो सकती है.....तमसो मा ज्योतिर्मय......मनुष्य
अजर-अमर नहीं है...आत्मा और ज्ञान अजर-अमर है.....और इनकी यात्रा कभी नहीं
थमती है....जैसे समय....ना थमता है....ना थकता है....जो कुछ भी है, जिसे हम
ईश्वर के नाम से जानते है....वह प्रकाश का ही रूपांतरण है....गीता में
श्री कृष्ण कहते हैं..…सभी प्रकाशीय वस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की
ऊर्जा , मैं हूँ...और प्रार्थना करने पर सन्देश मिलता कि DON’T WORRY…..”मै
हूँ ना”.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का
आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव....आपकी कृपा से सबका सब काम हो रहा है और
होता रहे..... हार्दिक स्वागत......”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#... #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#.
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