Saturday 5 November 2016

एक नही....अनेक मामलों मे...खुद का अनुभव...सबको....मजदुर, कामगार, कामदार, कारीगर, कलाकार....कुछ क्षेत्र मे कम प्रयास से आशातीत सफलता प्राप्त हो जाती है....तब नियमित अभ्यास का पहलु मजबूत सिद्ध होता है....लेकिन सब दिन समान नही....मालवांचल मे एक लोकोक्ति है...कोई दिन लाड़ू, कोई दिन पेड़ा और कोई दिन फाकम-फांका जी....समस्या किसी को भी आ सकती है....किन्तु जब लगातार सफलता प्राप्त होती है तो खुद के वायुमंडल मे ईश्वरीय अनुकम्पा का आभास होता है....लेकिन जब सफलता प्राप्त न हो तो किसी भी मामले मे खुद को जबरन घसीटने का भ्रम हो सकता है...संघर्ष के दौरान घर्षण अपना व्यवहार प्रदर्शित करता रहता है...घसीटा लाल द्वारा दलाली की बात नही....कुल मिला कर हाथ मे किस प्रकार का काम होना चाहिये ?....इस प्रश्न पर व्यक्तिगत विचार करना खुद का काम होता है...और खुद को ही करना पड़ता है....और काम मे खुद को आनन्द आ जाये तो खुदा मिल जाये....आमोद-प्रमोद की बात बाद मे....किन्तु कर्तल ध्वनि हर्ष-उल्लास के बगैर संभव नही....प्रतिद्वंधि को पुरस्कार मिलता देख...चेहरे का भाव कहते है....दर्पण झूठ न बोले....खुद के ऊपर गुस्से वाली बात नही....और खुद के ऊपर सहानुभूति या दया दिखाना कितना लाज़मी है ?...तब गवाही मे खुद का मन....अन्दर ही अन्दर...गहरे पानी पैठ....कविता, शेरो-शायरी....साधन-संसाधन के बगैर दिमाग मे जमते नहीं...और व्यवहारिक जीवन की पाठशाला चौराहे पर जम जाती है...तब पंचम की फेल को चौपाल-सागर बनते देर ना लगे....नकारात्मक रुख अपनाने मे कितना समय लगता है ?....यह किसी के संस्कार पर निर्भर करता है....परन्तु गलत रुख को सही करने के लिये समय ज्यादा लग सकता है...हो सकता है मेहनत भी लगे....शायद इसीलिए बुरी आदत आसानी से जाती नही...सच्चाई के लिये कोई भी चीज छोड़ी जा सकती है लेकिन किसी चीज के लिये सच्चाई छोड़ना उचित नही....तब ज़मीर सच्चाई के साथ....पराये-धन और परायी-नार के सम्बन्ध में सिर्फ बुजुर्गो की सलाह काम की होती है...नुस्खा...दवा के रूप मे...शुद्धता का दावा...मीठी या कड़वी की बात नही...लेकिन प्रकृति के कड़वेपन मे भी अमृत....चाहे पिता की ललकार हो या माँ की फटकार...नीम अथवा करेला...औषधि का सम्मान....बस फैक्ट्री की कड़वी-गोली और जबान की कड़वी-बोली भुलाये ना भूले....और मिठास फलों की फायदेमंद...ताजी मिठास से हानि नही....वर्ना फल कहते है दूकानदार से....मुझे ताजे मे ही बेच दो अन्यथा बासी हालात मे मैं खुद तुम्हारा सौदा कर दूंगा...और पानी की प्रकृति मे चमत्कार, महीनो नारियल के खोल मे रह कर भी मजेदार....शुद्धता का दावा...दिल टूटते किसी ने देखा नही किन्तु हजार टुकड़े देखने का दावा करने वाले मिल सकते है...भावनाओं मे बहने की बजाय भक्ति में भाव महत्वपूर्ण....अध्यात्म के वृक्ष पर चढ़ने के लिये वेद-विशारद अनिवार्य नही....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है....रिक्त स्थान की पूर्ति.....Fill in the BLANKS.....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).....

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