एक निश्चित बिंदु के बाद, पैसे का कोई अर्थ नहीं रह जाता......किसी मनुष्य
का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी सम्पत्ति.....अच्छा
व्यवहार सभी गुणों का सार है......अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता
है......उत्कृष्टता वो कला है जो प्रशिक्षण और आदत से आती है....दोस्तों के
बिना कोई भी जीना नहीं चाहेगा, चाहे उसके पास बाकि सब कुछ हो....दोस्त
बनना एक जल्दी का काम है लेकिन दोस्ती एक धीमी गति से पकने वाला फल
है.....मित्र का सम्मान आमने-सामने....पीठ पीछे प्रशंसा.....आवश्यकता पड़ने
पर सहायता.....यह ईमानदारी का नियम है.....मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक
प्राणी है......कभी भी उस व्यक्ति से प्रेम नहीं करता जिससे वो डरता
है....मनुष्य के सभी कार्य इन सातों में से किसी एक या अधिक वजहों से होते
हैं: मौका, प्रकृति, मजबूरी, आदत, कारण, जुनून, इच्छा....और इन सबमे
महत्वपूर्ण है चरित्र.....अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी
माध्यम.....मनुष्य अपने सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता
है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है....अच्छा
लिखने के लिए खुद को एक आम इंसान की तरह व्यक्त करना पड़ता है.....तब एक
बुद्धिमान आदमी की तरह सोचना पड़ सकता है.......जब उन लोगों के बारे में पता
चले जो वास्तव में आपके मित्र नहीं है......जितना ज्यादा आप जानोगे, उतना
ज्यादा आप यह जानोगे की आप कुछ भी नहीं जानते....कोई भी क्रोधित हो सकता
है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही
उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस कि बात नहीं है और यह
आसान नहीं है....शिक्षा की जड़ें कड़वी होती है लेकिन फल मीठे होते
है.....वो जो बच्चों को शिक्षित करते हो वो उन्हें पैदा करने वालो से
ज्यादा सम्मानीय है क्योकि वो उन्हें केवल ज़िन्दगी देते है जबकि वो उन्हें
सही तरीके से ज़िन्दगी जीने की कला सीखाते है.....वर्ना युवा आसानी से
धोखा खाते है क्योंकि वो शीघ्रता से उम्मीद लगाते है....शिक्षित और
अशिक्षित में उतना ही फर्क है जितना की ज़िन्दगी और मौत में.....माना कि
शिक्षा का व्यवसाय तगड़ा होता है.....तब निशुल्क भी कभी-कभी लाभकारी हो जाता
है....सभी भुगतान युक्त नौकरियां दिमाग को अवशोषित और अयोग्य बनाती
हैं.....आदमी एक लक्ष्यों की मांग करने वाला प्राणी है उसकी ज़िन्दगी का
सही अर्थ है कि वो अपने लक्ष्यों के लिए प्रयास करता रहे और उन्हें
प्राप्त करता रहे....संकोच आभूषण भी है और धिक्कार भी.....अपने दुश्मनों पर
विजय पाने वाले की तुलना में शूरवीर वही....जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय
प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती
है...उत्कृष्टता कोई कार्य नहीं बल्कि एक आदत
है...सत्यम्.....शिवम्......सुंदरम्......एकांत में जाग्रत एकाग्रता हो और
सार्वजानिक होने में सुन्दरता, शालीनता और सुकून हो....बस इसी तथ्य पर
सिद्धि अंत तक सुरक्षित रह सकती है.... LIGHTS…. CAMERA…..ACTION……part of
every day life.. …."विनायक
समाधान"...@...91654-18344.....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
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