Wednesday 2 November 2016

अबकी बार....जब सेल्फी लेने की इच्छा हुई...प्रतिभाओं के साथ फोटो खिंचवाने का लोभ....तब हमेशा की तरह... चाह कर भी सम्भव नहीं हो पाया.....तब आश्रम का एक ही प्रश्न...WHY ?....साधना, आराधना, जप, तप...एकांत के लिए निर्मित हुए है...यश, कीर्ति की चाह मे खंडित होना जायज़ नही.....पंडित का धर्म केवल पाण्डित्य ही सम्भव है...जाने-माने अवधूत श्री लहड़ी महाशय जी से साक्षात्कार का अनुभव रखने वाले....कोलकाता-बंगाल के श्री दासगुप्ता साहब...महाकाल-वन मे....एक उत्तम साधक मित्र से सत्संग हुआ तो उन्होंने विनायक समाधान को तुलसी की उपमा से सम्बोधित किया....तब ज्ञान-चक्षु मे इस शंकर स्वरूप कंकर से लहर इस प्रकार प्रकट हुई...
"तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक" ।।
और साक्षात् तुलसी की गवाही.....हर साधक को परिश्रम करना पड़ता है....भागने-दौड़ने की बात नही...यह तो हर कोई कर रहा है...किन्तु एकान्त को साध कर रखना वास्तव मे मुश्किल काम...साधक का दुनियादारी से सीमित संपर्क....व्यक्तिगत कार्य भी वरीयता सूची से बाहर....बस यही है, काम की बात....मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है....ज्ञान, विनम्रतापूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सत्य और राम का नाम.....और ये सुकून की बात है कि ये चीजें बाजार की बजाय हमारे अंतर्मन में उपलब्ध...आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते...

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