Friday 4 November 2016

मकान बन जाते है कुछ हफ्तों में.....ये पैसा कुछ ऐसा है.....और घर टूट जाते है चंद पलों में......ये पैसा ही कुछ ऐसा है.....
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ।।
कोई भी भटकना नही चाहता....मगर भटकने के बाद पता चलता है कि भटकना जरुरी है....तब पता चलता है कि काल्पनिक तकलीफ से भली तो वास्तविक तकलीफ होती है....डर की मात्रा कम से कम....और भटकने के बाद यह मूँह से निकल सकता है कि...हम किसी से कम नही....या फिर ठोकर खा कर ठाकुर बनने का अहसास....या फिर घिस-घीस कर कंकर से शंकर बनने की कवायद....किसी मे भी नुक्सान नही...और इस यात्रा मे कोई भी नुक्स निकाल सकता है...तब गवाही मे प्रणव यानि ईश्वर....वाचक....तत्पश्चात वाच्य...नाम वाला नामी-गिरामी....साक्षात् ओंकार..."ॐ"....कभी-कभी खुद के घर की पहचान पडोसी के घर से देना पड़ती है...पते के साथ लैंड-मार्क जरुरी है....नाम-दानी का नियम नित्य है...तब कौन गुरु, कौन चेला ?..

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