सरल रूप से कैलेण्डर कहता है...साप्ताहिक रूप से सात्विक रूप से आहार,
विहार और सदाचार जैसे शब्दों को आत्मसात करने के दिन है या हो सकते
है....सोमवार, बुधवार, गुरुवार....महादेव, गणाध्यक्ष और साक्षात
गुरु-वर...गणपति की माया और गुरुदेव की छाया...तब भोलेनाथ साक्षात् भाया(मन
को भाने वाला...मित्र-सखा-बन्धु)...भाया राजस्थानी शब्द है, जो हम उन लोगो
के लिये इस्तेमाल करते है, जो घूम-फिर कर नमकीन बेचते है...शांत-भाव
से....बिना किसी ध्वनि-प्रदूषण के...और कैलेण्डर के भी यही भाव...शांत-भाव
की शांति स्थापित करना....तब कोई
शोर-शराबा नही...जप-तप का यही नियम...एक ही संकल्प कि कोई शर्त नही लेकिन
नियम अटल....तब इन्ही दिनों के लिये कुछ विनायक उपाय हो सकते है...सोमवार
को शिव मंदिर मे जल-अभिषेक या बिल्व-पत्र या रुद्राष्टक-पाठ....बुधवार को
गणपति-दर्शन के साथ मंदिर की आरती में शामिल होने का अवसर....गुरुवार को
रात्रि भोजन-त्याग तथा मौन-व्रत...मात्र तीन धंटे(दो काल-खण्ड)....बस
समाधान के यही साधन नैया पार लगाने मे काम आते है....और इन सभी विनायक-उपाय
के साथ प्रार्थना के रूप मे विनायक-साधना जारी रहती है....धर्म के स्थायी
होने का राज़ है....प्रार्थना...अनंत और अखंड...संसाधन का सर्वोत्तम
स्वरूप....वर्ष 2007 से दिक्षा उपरान्त इन्ही तीन दिवस पर
तक़रीबन....करीब-करीब....लगभग 25000 लोगो से चर्चा का सौभाग्य रहा...और
सोशल-मीडिया के कारण भारत वर्ष के लगभग सभी प्रदेशों के मित्रों से चर्चा
का मौका मिला....चैटिंग के दौरान हिंदी का प्रयोग बेहद सफल रहा...अंग्रेजी
तो देखा-देख की भक्ति साबित होती है...शास्त्र अपने शब्दों पर अडिग रहते
है...इसी आधार पर विश्वास भी अटल...समय को हम अपने संस्कारो के आधार पर
उपयोग करते है.....आदमी खुद के बारे में सिर्फ अपनी मातृ-भाषा में सोचता और
समझता है...यह बात चिंताजनक कि दुनिया मे हर तीसरा आदमी अपने भविष्य को ले
कर बेहद चिंतित...हद से ज्यादा...तब इसका एक ही समाधान कि हाथ मे वर्तमान
मे करने के लिये सरलतम उचित कार्य होना चाहिये....ठाट से...किन्तु मुश्किल
यह होती है कि इनमें भी मन नही लगता....तब मन में उपज रहे संशय का निवारण
कैसे हो ?....विनायक-विवेचना विवेक अनुसार ही संभव है..तब शब्द मस्तिष्क मे
रेखाओं का चित्रण करते है....तब बाकि साधन समकक्ष अवश्य माने जा सकते
है....
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