Saturday 5 November 2016

मन-लुभावन साहित्य नही...एक ही चाहत....जब अकेले हो तो परमात्मा से बात हो जाय....और जब किसी के साथ हो तो परमात्मा की बात हो जाय.....और बुजुर्ग अपने अनुभव के आधार पर कहते है.....”करने से होता है”.....कुछ हो ना हो....बस जिक्र हो जाये.....और जिक्र सुन कर फ़िक्र हो जाय....चिन्ता और चिता की बात नही....और बुजुर्गो की आवाज़ पर जो दौड़ लगा दे...आज्ञाकारी-पाकीज़ा.....सीधी बात...सिर्फ खरी-खरी...सही और गलत की और इशारा...ऊंट किस करवट बैठता है ?...प्रश्न का कोई निश्चिन्त उत्तर नही....और आदमी को नींद ना आये तो करवटे बदलने का क्रम जारी रहता है...तब इस प्रश्न का जवाब नही कि कौन किस करवट सोता है ?....और खर्राटों का गहरी नींद से कितना सम्बन्ध है ?.....कोई नही जान सका....और बच्चा आठ से दस घंटे लगातार फर्राटे से गहरी नींद सोता है....तब तो खर्राटे भी नहीं....और खर्राटों की बारिश बेमौसम....पल में चालू, पल में बंद....शत-प्रतिशत बेहोशी का आलम....वायु के आरोह-अवरोह में रुकावट के लिए खेद प्रकट करने का समय नहीं मिलता है...खर्राटों के कारण किस को नींद नही आ रही है ?...यह खर्राटे मारने वाले को कभी पता नही चल पाता है....शिकायत करने वाले करते रहे....क्योंकि खुद खर्राटे लेने वाले को भी मालुम नही होता है कि उसे नींद आ रही है अथवा नही...कहीं नींद आने का भ्रम तो नही ?....पीठ पीछे वाली बात नहीं....आड़ मे लेन-देन की बात नहीं....थर्ड-अंपायर भगवान को मान सकते है...थर्ड-पार्टी या थर्ड-डिग्री की बात नहीं.....संज्ञान में आये बगैर कोई काम गलत सिद्ध होता है तो उसे सही सिद्ध करना सरल है..यही है आधार मजबूत चरित्र का.....सिर्फ संज्ञान को गहरी नींद से जगाना होगा...और यह अध्यात्म से संभव है....यह याद रखते हुये कि इसका कोई विकल्प नही....और इस आनंद का कोई अंत नही....चरम की चर्चा नही किन्तु परम-आनंद हर एक का अधिकार है....और यह हो जाय तो सुबह उठने के विचार मे बरकत आ सकती है....लक्ष्मी का उल्लू पर बैठ कर आने वाली बात नही....सिर्फ सोलह आने मे सच को तोला जा सकता है....सोना तौलने वाली बात नही...नमक तो महंगी चीज हो जाती है...सोलह आने सही.....

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