Saturday 19 November 2016

जनता-जनार्दन के लिये....वेधशाला....यन्त्र-महल....जंतर-मंतर....अर्थात यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र...आवश्यकता के अनुरूप आविष्कार....अर्थात नक्षत्रों की गणना.... An observatory is a location used for observing terrestrial or celestial events. Astronomy, climatology/meteorology, geology, oceanography and volcanology.....उन तथ्यों के बारे मे आकलन, जिनको प्रत्यक्ष रूप से देख पाना सम्भव नही....दुरी इतनी कि दूरबीन के बिना काम ना चले...और सिर्फ देखने भर से काम ना चले...तब काम की बात के लिये....गिनती और पहाड़ो के लिये....इबादत के लिये आयत का निर्माण....जंतर-मंतर मे अनुभव का समावेश...साधना से सिद्धि का प्राकट्य....जैसे शब्दो से वाकसिद्धि का प्रदर्शन....तब भारतीय पञ्चाङ्ग अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है....किन्तु अंतर्राष्ट्रीय रूप से आज भी स्वीकार्य नही....चौघड़िये को घड़ी कभी भी अँगीकृत नही कर सकती है....चौघड़िया मन्त्र की भाषा मे कहता है, शुभम भवतु....घड़ी यन्त्र के रूप मे कहती है, जो होना है, वह हो कर रहेगा....यन्त्र हो या मन्त्र दोनों समय की परिधि मे....महत्व सिर्फ नियमित होने पर...और संकल्प यही कि....अति सर्वत्र वर्जयते...आवश्यकता से अधिक आराम या दौड़-भाग मे बोर होने की सम्भावना....महोत्सव हो या अनुष्ठान....भीड़ होना लाज़मी....पांडाल तो इसीलिये कायम होते है....परन्तु बात तो नियमित नियम की होती है....दिनचर्या को आसान करना जरा सा मुश्किल काम हो सकता है....भारतीय आध्यात्म-दर्शन को सुलभ बनाने के लिये पंचाग को श्रेष्ठ माना जाता है....यह वह चीज है जो संपूर्ण अन्तरिक्ष को पन्ने पर खींच कर ले आती है...जैसे पन्ने पर रेखाओं का चित्रण.....जैसे सूरज की गर्मी से जलते तन को मिल जाये तरुवर की छाया...जो खोया, वही पाया....शरद-पूर्णिमा का महत्व ब्रह्माण्ड का सत्य है...तब सरल रूप से कैलेण्डर कहता है...साप्ताहिक रूप से सात्विक रूप से आहार, विहार और सदाचार जैसे शब्दों को आत्मसात करने के दिन है या हो सकते है....सोमवार, बुधवार, गुरुवार....महादेव, गणाध्यक्ष और साक्षात गुरु-वर...गणपति की माया और गुरुदेव की छाया...तब भोलेनाथ साक्षात् भाया(मन को भाने वाला...मित्र-सखा-बन्धु)...भाया राजस्थानी शब्द है, जो हम उन लोगो के लिये इस्तेमाल करते है, जो घूम-फिर कर नमकीन बेचते है...शांत-भाव से....बिना किसी ध्वनि-प्रदूषण के...और कैलेण्डर के भी यही भाव...शांत-भाव की शांति स्थापित करना....तब कोई शोर-शराबा नही...जप-तप का यही नियम...एक ही संकल्प कि कोई शर्त नही लेकिन नियम अटल....तब इन्ही दिनों के लिये कुछ विनायक उपाय हो सकते है...सोमवार को शिव मंदिर मे जल-अभिषेक या बिल्व-पत्र या रुद्राष्टक-पाठ....बुधवार को गणपति-दर्शन के साथ मंदिर की आरती में शामिल होने का अवसर....गुरुवार को रात्रि भोजन-त्याग तथा मौन-व्रत...मात्र तीन धंटे(दो काल-खण्ड)....बस समाधान के यही साधन नैया पार लगाने मे काम आते है....और इन सभी विनायक-उपाय के साथ प्रार्थना के रूप मे विनायक-साधना जारी रहती है....धर्म के स्थायी होने का राज़ है....प्रार्थना...अनंत और अखंड...संसाधन का सर्वोत्तम स्वरूप....वर्ष 2007 से दिक्षा उपरान्त इन्ही तीन दिवस पर तक़रीबन....करीब-करीब....लगभग 25000 लोगो से चर्चा का सौभाग्य रहा..

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